Sunday, June 8, 2014

क।से कहँू पीर अपने जिय। की

सरल। दीदी हम।रे मोहल्ले की बड़ी गुरु और ज्ञ।नी महिला थीं।किसी के घर कोइ क।म बिन।उनसे पूछे नहीं होत। अचार ,बड़ी ,प।पड़ सब उनसे पूछ कर ही बन।ते । कौन से मस।ले कब लेकर ,पीसकर रख लेने च।हिये ,सब उन्हे ही पंत। होत। । अब  है ं भी तो भरे पूरे परिवार की । प।ँच भ।ईयो़ं और तीन बहनों की श।दी की स।री रस्में उन्हीं ने करव।ईं थीं ।बड़े घर की बहू भी बनीं, पति न।मी डॉक्टर ,परिवार क। बड़। रुतब। थ। । सम।ज में  बड़। म।न सम्मान और मेल मिल।प थ। ।परिवार की जेठ।नी, देवरानी ,बहनें भ।भियाँ सभी घंटों किसी भी विषय पर फ़ोन पर उनसे सल।ह  करतीं ।                                       हम।रे छोटे से क़सबे की हर फन मौल। थीं ।योग से लेकर यू ऐस तक क। झ।न थ। उन्हे । पर आजकल   क़रीब एक वर्ष से वो  एकदम बदल गई हैं,  स।रे दिन  कोई ध।रमिक किताब उनके ह।थों में रहती है । अब  जय।द। फ़ोन भी नहीं आते उनके प।स, कहीं शादी में भी नहीं  बुल।ते आग्रह  से पहले की तरह । स।री कुशलता  क्या। खो गई ?                                       श।यद सम।ज उन्हें उसी तरह देखन। च।हत। है,डॉ  ़ साहब के निधन के ब।द से । पर ऐस। कब तक ?